साहित्यकार, कलाकार, बुद्धिजीवी कई तरह के होते हैं, कुछ कला के लिए कला की, कविता के लिए कविता आदि की रचना करते हैं और कुछ मानवता को आगे ले जाने, उसे सही रास्ता दिखाने, और संवेदनाओं को जगाने-विसंगतियों पर प्रहार करने वाली रचनाओं का निर्माण करते हैं....ऐसी ही एक रचना है चीन की क्रान्तिकारी लेखिका याङ मो का उपन्यास तरुणाई का तराना...
'तरुणाई का तराना' अर्द्ध-सामन्ती अर्द्ध-औपनिवेशिक चीन समाज की मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे नौजवान छात्र-छात्राओं की शौर्यगाथा का अत्यन्त सजीव, प्रेरणादायी और रोचक वर्णन करता है। इस सदी का चौथा दशक चीन के लिए एक भयानक अन्धकार-काल था। एक तरफ, जापानी आक्रमणकारी चीन के उत्तर-पूर्वी प्रान्तों पर क़ब्ज़ा करके तेज़ी से भीतर की ओर घुसते चले आ रहे थे, और दूसरी तरफ़ सत्तारूढ़ कुओमिन्ताङ ने विभिन्न अपमानजनक समझौतों पर हस्ताक्षर करके चीन के कई प्रान्तों पर जापान की सम्प्रभुता स्वीकार कर ली थी तथा जापानी साम्राज्यवाद का प्रतिरोध कर रही लाल सेना और कम्युनिस्ट पार्टी के नेत़ृत्व में संघर्ष कर रहे क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं और देशभक्त नौजवानों का दमन और क़त्लेआम शुरू कर दिया था। 1935 की सर्दियों में जब जापानी साम्राज्यवादियों ने चीन के होपेई और चहार प्रान्तों में अपनी कठपुतली सरकारें गठित कर दीं और इस तरह पूरे उत्तरी चीन को खतरा उत्पन्न हो गया, तो पेइपिंग के छात्र-छात्राओं ने प्रतिरोध के लिए देश की जनता का आह्वान किया। ''चीन के लोगो, देश की रक्षा के लिए उठ खडे हो!'' इस नारे के साथ शुरू हुआ 9 सितम्बर 19353 का आन्दोलन, चीनी जनता द्वारा जापानी आक्रमण व कुओमिन्ताङ सरकार की अप्रतिरोध की नीति के विरोध का आरम्भ था।
यही घटनाएं 'तरुणाई का तराना' की पृष्ठभूमि है, जब असंख्य बहादुर युवक-युवतियां मशीनगनों, संगीनों, क्रूर यातनाओं, लम्बे कारावासों और यहां तक कि प्राणदण्ड की परवाह किये बिना दुश्मन के खि़लाफ़ विकट संघर्ष में कूद पड़े थे। उपन्यास सिर्फ़ संघर्षों का विवरण ही नहीं है, बल्कि क्रान्तिकारी संघर्ष की राजनीति, क्रान्ति की दिशा, सही रणनीति और रणकौशल की सैद्धान्तिक विवेचना और उनके व्यावहारिक प्रयोग का एक अमूल्य दस्तावेज़ भी है।
1 comment:
बहुत सुन्दर किताब है !!!
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