'तीन टके का उपन्यास' में ब्रेष्ट पतनशील पूंजीवादी समाज में व्यापरिक पूंजीपति वर्ग की घोर अनैतिकता, लालच और उसके ''राष्ट्रवाद'' की असलियत को एकदम उजागर कर देते हैं। ब्रेष्ट बहुत ही दिलचस्प और यथार्थवादी तरीके से पूंजीवादी राष्ट्रवाद, पूंजीवादी नैतिकता, पूंजीवादी प्रेम, पूंजीवादी रिश्तों, पूंजीवादी संवेदनाओं, पूंजीवादी न्याय और पूंजीवादी मीडिया की वास्तविकता को सामने लाते हैं। साथ ही ब्रेष्ट अपराध जगत और उद्योग और व्यापार जगत के बीच के गुप्त सम्बन्धों को भी बेपर्दा कर देते हैं। वास्तव में, ब्रेष्ट दिखलाते हैं कि दरअसल व्यापार वह अपराध है जो बिना किसी सज़ा के चलता रहता है। ब्रेष्ट अधिक तीखे़पन के साथ बाल्ज़ाक के उस कथन को सत्यापित करते दिखते हैं कि हर सम्पत्ति साम्राज्य की बुनियाद अपराध होता है।
इस उपन्यास को पढ़ते समय कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि यह आज के भारत के लिए लिखा गया है।
...छोटे व्यापारिक वर्गों में फासीवादी उभार का सम्भावित समर्थक बनने का गुण ब्रेष्ट के इस उपन्यास में साफ़ तौर पर सामने आता है। यह कहा जा सकता है कि यह उपन्यास ब्रेष्ट की सर्वश्रेष्ट रचनाओं में से एक है। निस्सन्देह रूप से, ब्रेष्ट यहॉं तीखे व्यंग्य के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में हैं!
इसे हिन्दी में परिकल्पना प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
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