टाइम्स ऑफ इंडिया के 2 फरवरी 2010 के अंक में प्रगति मैदान, नई दिल्ली में चल रहे 19वें विश्व पुस्तक मेला में 'जनचेतना' के स्टाल की अच्छी कवरेज की गई है। अखबर लिखता है कि मार्क्स, लेनिन और अन्य लेखकों की किताबें युवाओं को विश्व पुस्तक मेला में आकर्षित कर रही हैं। मार्क्स के चित्रों, और भगतसिंह की तस्वीरों वाले पोस्टर, क्रान्तिकारी कविताओं और नारों से सजे पोस्टर और कार्ड और लोगों को सपने देखने, संघर्ष करने और जीतने का आह्वान करने वाले बैनर और इनके साथ ही शेल्फों में सुन्दर ढंग से व्यवस्थित किताबें लोगों को (विशेषकर शहरी युवा आबादी को) आज के समय की चुनौतियों का एक युक्तिसंगत समाधान प्रस्तुत कर रही हैं।
प्रगति मैदान के हॉल नं. 1 (स्टॉल नं. 27-30) और हॉल नं. 12 ए (स्टॉल नं. 97-104) में एक छोटी पुस्तक क्रान्ति आकार ले रही है जहां मार्क्स, लेनिन की किताबों से लेकर भगतसिहं के क्रान्तिकारी विचारों पर केंद्रित किताबें उपलब्ध हैं। इसके अलावा जनचेतना के स्टाल पर कविताओं, कहानियों, प्रेरणादायी पुस्तकों और आज के दौर के लिए जरूरी साहित्य पाया जा सकता है। जनचेतना का स्टॉल बेहतर भविष्य के लिए आम आदमी को जगाने और प्रेरित करने वाले साहित्य पर ध्यान केद्रित करता है। साथ ही सुंदर और साहित्यिक कार्ड, नोटपैड, कैलेंडर भी मौजूद हैं। जनचेतना के स्वयंसेवक (जिसमें ज्यादातर युवक-युवतियां हैं) प्लैकार्ड लिए नजर आते हैं जिसपर लिखा है 'एक सांस्कृतिक मुहिम, एक वैचारिक परियोजना, वैकल्पिक मीडिया का एक मॉडल'।
जनचेतना के अभिनव, दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के छात्र ने बताया कि जनचेतना के स्टॉल पर आने वाले दर्शक जिनमें युवाओं की बड़ी आबादी होती है आज के दौर की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जुड़े अपने प्रश्नों का उत्तर तलाशते हुए यहां आते हैं। क्रान्तिकारी साहित्य के अलावा प्रबुद्ध अकादमिक पाठकों के लिए अन्य कई प्रकार की क्लासिक कृतियां जनचेतना पर उपलब्ध हैं।
हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान में भी विश्व पुस्तक मेला में जनचेतना के स्टॉल की कवरेज की गई है।