Wednesday, August 26, 2009

कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र

डेविड रियाज़ानोव
(मार्क्‍स-एंगेल्स इंस्टीट्यूट, मास्को के निदेशक) की प्रस्तावना और व्याख्यात्मक टिप्पणियों सहित
‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ वैज्ञानिक कम्युनिज़्म का पहला कार्यक्रम-मूलक दस्तावेज़ है जिसमें मार्क्‍सवाद के मूल सिद्धान्तों की विवेचना की गयी है। यह महान ऐतिहासिक दस्तावेज़ वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त के प्रवर्तक कार्ल मार्क्‍स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था और 1848 के प्रारम्भ में यह प्रकाशित हुआ था। लेनिन के शब्दों में, ''यह छोटी-सी पुस्तिका अनेकानेक ग्रन्थों के बराबर है: उसकी आत्मा सभ्य संसार के समस्त संगठित और संघर्षशील सर्वहाराओं को प्रेरणा देती रही है और उनका मार्गदर्शन करती रही है।''
‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ पर राजनीतिशास्त्र के कई विद्वानों ने व्याख्याएँ और टिप्पणियाँ लिखी हैं। इनमें अब तक सर्वाधिक गम्भीर, वैज्ञानिक और सटीक व्याख्याएँ-टिप्पणियाँ क्रान्ति के बाद मास्को में स्थापित मार्क्‍स-एंगेल्स इंस्टीट्यूट के निदेशक डेविड रियाज़ानोव की ही मानी जाती रही हैं। 1923 में प्रकाशित कम्युनिस्ट घोषणापत्र की ये व्याख्याएँ-टिप्प्णियाँ तत्काल पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गयीं और अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टियों ने इन्हें पाठ्य पुस्तक-सा बना लिया था। रियाज़ानोव की विस्तृत भूमिकाओं, व्याख्याओं और अनुपूरक निबन्धों के साथ घोषणापत्र का यह संस्करण कम्युनिज़्म के गम्भीर अध्येताओं के साथ ही युवा कार्यकर्ताओं और इस युग परिवर्तनकारी विचारधारा को समझने में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति के लिए आज भी बहुमूल्य और बेहद उपयोगी सिद्ध होगा।

प्रकाशक : राहुल फाउण्‍डेशन
मूल्‍य : 100/-

Wednesday, August 5, 2009

चिरस्‍मरणीय - कय्यूर के शहीदों की वीरगाथा

निरंजन

यह कय्यूर की कहानी है जो उत्तरी केरल में मालाबार इलाके में स्थित कसरगोद तालुक का एक गाँव है। यह उस गाँव के किसानों के न्यायोचित संघर्ष की कहानी है। यह कय्यूर के उन चार शहीदों की गाथा है जिन्होंने 1943 में अत्याचारी ज़मींदारों और ब्रिटिश गुलामी के खि़लाफ किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया था और हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया था। यह उन वीरों की कहानी का ही एक हिस्सा है जिन्होंने देश की आज़ादी और ग़रीब जनता की बेहतर ज़िन्दगी के लिए संघर्ष में अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। यह हमारे अतीत और भविष्य के शहीदों की शहादत की लम्बी शृंखला की ही एक कड़ी है।
अगर कय्यूर के संघर्ष का सामान्य इतिहास लिखा जाता तो यह कुछ ही पृष्ठों में समा जाता और तब अनेक तथ्य छुपे ही रह जाते। लोगों के दुर्निवार साहस, उनकी उफनती भावनाओं, राजनीतिक समस्याओं और आर्थिक मुद्दों को सामने लाने के लिए एक पूरे उपन्यास की ही ज़रूरत थी। कन्नड़ के प्रसिद्ध साहित्यकार निरंजन ने तथ्य और कथा को मिलाकर जो कहानी पेश की है वह अद्भुत है तथा तथ्य से अधिक सत्य है।

कय्यूर के किसान संघर्ष की गाथा बताने वाला यह उपन्यास कन्नड़ में चिरस्मरणेय नाम से छपा था और बेहद लोकप्रिय हुआ था। ‘चिरस्मरण’ नाम से मलयालम में और ‘द स्टार्स शाइन ब्राइटली’ नाम से अंग्रेज़ी में भी इसका अनुवाद हो चुका है। सुपरिचित कवि और पत्रकार रामकृष्ण पाण्डेय का यह हिन्दी अनुवाद पूरे हिन्दी भाषी क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हुआ।

परिकल्‍पना प्रकाशन से प्रकाशित
पुस्‍तक : चिरस्‍मरणी
ISBN 978-81-89760-01-4
मूल्‍य : 40 रुपये

Monday, August 3, 2009

चुनी हुई कहानियाँ, खण्ड 3 - मक्सिम गोर्की

मक्सिम गोर्की के विराट रचना-संसार के एक बहुत बड़े हिस्से से पूरी दुनिया के पाठक अभी भी अपरिचित हैं। उनके कई महान उपन्यास, उत्कृष्ट कहानियाँ और विचारोत्तेजक निबन्ध अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में भी उपलब्ध नहीं हैं। इस मायने में भारतीय भाषाओं और ख़ासकर हिन्दी के पाठक अपने को और भी अधिक वंचित स्थिति में पाते रहे हैं।
‘माँ’, ‘वे तीन’, ‘टूटती कड़ियाँ’, (‘अर्तामानोव्स’ का अनुवाद), ‘मेरा बचपन’, ‘जीवन की राहों पर’, ‘मेरे विश्वविद्यालय’ (आत्म- कथात्मक उपन्यासत्रायी), ‘बेकरी का मालिक’, ‘अभागा’ और ‘फोमा गोर्देयेव’ - गोर्की के कुल ये नौ उपन्यास ही हिन्दी में प्रकाशित हुए हैं। इसके अतिरिक्त उनके चार नाटक और चार-पाँच निबन्ध ही सम्भवतः अभी तक हिन्दी में छपे हैं।
जहाँ तक कहानियों का प्रश्न है, ‘इटली की कहानियाँ’ संकलन में शामिल कहानियों के अतिरिक्त, पिछले 60-70 वर्षों के दौरान गोर्की की अन्य लगभग पच्चीस या छब्बीस कहानियाँ ही हिन्दी में छपी हैं और वे भी एक साथ कहीं उपलब्ध नहीं हैं। इन सभी कहानियों को पहली बार काल-क्रम से व्यवस्थित करके, एक साथ, चार खण्डों में प्रस्तुत किया जा रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद जिन चार कहानियों का रचना-काल पता नहीं चल सका, उन्हें तीसरे खण्ड के अन्त में स्थान दिया गया है।
इसी क्रम में आगे परिकल्पना प्रकाशन की योजना गोर्की के अन्य महत्त्वपूर्ण उपन्यासों और निबन्धों के हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित करने की है। इस सिलसिले में पाठकों के सुझावों का पूरे दिल से स्वागत है।
चुनी हुई कहानियाँ, खण्ड 3 में कुल 11 कहानियां संग्रहित हैं। ‘इन्सान पैदा हुआ’, ‘छब्बीस लोग और एक लड़की’, ‘तूफानी पितरेल पक्षी का गीत’ ऐसी कहानियाँ हैं जिनसे हिन्दी पाठक पहले से परिचित हो सकते हैं।

Saturday, August 1, 2009

प्रेम, परम्परा और विद्रोह

कात्यायनी

दो स्त्री-पुरुष नागरिकों के प्रेम करने की आज़ादी का प्रश्न एक बुनियादी अधिकार का प्रश्न है। व्यक्तिगत विद्रोह इस प्रश्न को महत्ता के साथ एजेण्डा पर लाते हैं लेकिन मध्ययुगीन सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों-संस्थाओं के विरुद्ध दीर्घकालिक, व्यापक, रैडिकल सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन के बिना इन मूल्यों को अपना हथियार बनाने वाली फासिस्ट शक्तियों के संगठित प्रतिरोध के बिना और इन मूल्यों को अपना लेने और इस्तेमाल करने वाली सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष के बिना प्रेम करने की आज़ादी हासिल नहीं की जा सकती। प्रेम की आज़ादी के लिए केवल मध्ययुगीन मूल्यों के विरुद्ध संघर्ष की बात करना बुर्जुआ प्रेम का आदर्शीकरण होगा। पूँजीवादी उत्पादन-सम्बन्ध के अन्तर्गत सामाजिक श्रम-विभाजन और तज्जन्य अलगाव के होते, न तो स्त्रियों की पराधीनता समाप्त हो सकती है और न ही पूर्ण समानता और स्वतन्त्रता पर आधारित स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ही अस्तित्व में आ सकते हैं।
...प्रेम, परम्परा और सामाजिक क्रान्ति के प्रश्न के सभी पक्षों पर ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण से सांगोपांग और सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत करने वाली यह पुस्तक युवाओं, समाज-वैज्ञानिकों और जागरूक पाठकों के लिए ने केवल बेहद उपयोगी और विचारोत्तेजक है, बल्कि इस विषय पर अपने ढंग की अकेली पुस्तक है।

परिकल्‍पना प्रकाशन से प्रकाशित
ISBN 978-81-89760-22-0
मूल्‍य : 20/-

हाल ही में

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