Saturday, August 1, 2009

प्रेम, परम्परा और विद्रोह

कात्यायनी

दो स्त्री-पुरुष नागरिकों के प्रेम करने की आज़ादी का प्रश्न एक बुनियादी अधिकार का प्रश्न है। व्यक्तिगत विद्रोह इस प्रश्न को महत्ता के साथ एजेण्डा पर लाते हैं लेकिन मध्ययुगीन सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों-संस्थाओं के विरुद्ध दीर्घकालिक, व्यापक, रैडिकल सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन के बिना इन मूल्यों को अपना हथियार बनाने वाली फासिस्ट शक्तियों के संगठित प्रतिरोध के बिना और इन मूल्यों को अपना लेने और इस्तेमाल करने वाली सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष के बिना प्रेम करने की आज़ादी हासिल नहीं की जा सकती। प्रेम की आज़ादी के लिए केवल मध्ययुगीन मूल्यों के विरुद्ध संघर्ष की बात करना बुर्जुआ प्रेम का आदर्शीकरण होगा। पूँजीवादी उत्पादन-सम्बन्ध के अन्तर्गत सामाजिक श्रम-विभाजन और तज्जन्य अलगाव के होते, न तो स्त्रियों की पराधीनता समाप्त हो सकती है और न ही पूर्ण समानता और स्वतन्त्रता पर आधारित स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ही अस्तित्व में आ सकते हैं।
...प्रेम, परम्परा और सामाजिक क्रान्ति के प्रश्न के सभी पक्षों पर ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण से सांगोपांग और सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत करने वाली यह पुस्तक युवाओं, समाज-वैज्ञानिकों और जागरूक पाठकों के लिए ने केवल बेहद उपयोगी और विचारोत्तेजक है, बल्कि इस विषय पर अपने ढंग की अकेली पुस्तक है।

परिकल्‍पना प्रकाशन से प्रकाशित
ISBN 978-81-89760-22-0
मूल्‍य : 20/-

1 comment:

संदीप said...

यह वाकई में एक शानदार पुस्‍तक है...

हाल ही में

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